डोर-बेल पर निकिता ने दरवाज़ा खोला था.शाम के
धुंधलाते प्रकाश में उस लंबे व्यक्ति को पहिचान पाना कठिन था. एक स्नेहिल आवाज़ से
निकिता के सर्वांग झनझना उठे.
“कैसी हो निक्की? पहिचाना
मुझे, मै रॉबिन.”हलकी सी खुशी आवाज़ में स्पष्ट थी.
“सॉरी, यहाँ कोई
निक्की नहीं रहती.’ भरसक स्वर संयत करके निकिता ने जवाब दिया.
“कमाल है, मेरे सामने
मेरी वही परिचित निक्की खड़ी है, भला उसे
पहिचानने में भूल कर सकता हूँ?”